रांची: बेड़ो में 57 वीं पड़हा जतरा महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव में 200 गांव के लोगों ने शिरकत किया। साथ में शक्ति का प्रतीक रंपा और चंपा, काठ से बने घोड़े , हाथी पर पुरानी परंपराओं से चले आ रहे हैं। शोभा यात्रा के दौरान हाथी और घोड़े पर बैठा कर वहां के राजा , के साथ पूर्व सांसद करिया मुंडा समीर उरांव, डॉक्टर रविंद्र भगत, खिजरी विधायक राजेश कच्छावा बैठाकर जतरा तक ले जाया गया। इस महोत्सव के माध्यम से आदिवासी संस्कृति की विरासत को बचाने को लेकर कई लोगों ने अपना संदेश दिया। अपनी भाषा को कैसे जीवंत रखें इन तमाम चीजों को लेकर करिया मुंडा से लेकर पूर्व कुलपति रविंद्र भगत के साथ समीर उरांव राजेश कश्यप ने भी अपनी बात रखा... पूर्व सांसद करिया मुंडा ने मीडिया से बात करते हुए कहा सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए सभी को आना आगे होगा। पहले लोकगीत और लोक नृत्य लोगों का अहम हिस्सा हुआ करता था लेकिन इस विरासत को बचाने के लिए पढ़े लिखे लोगों को आगे आना होगा अखरा में जो पहले लिखा जाता था वह अब किताबों में कहां मिलेगा हमारे समय में मेले में खूब थिरकते थे बड़े-बड़े लोग। एक समय में रांची में स्वर्गीय कार्तिक उरांव शोभा यात्रा के दौरान ट्रक पर मांदर लेकर नाचते थिरकते निकले तो ईसाई समाज में एक डर सा माहौल पैदा हुआ कि अब तो हम लोगों के ऊपर खतरा है और उसी समय से महिलाओं ने सिंदूर लगाना भी प्रारंभ किया था समाज में। अभी भी विरासत को अच्छी तरह से बचाया जा सकता है बुद्धिजीवियों को आगे आकर इस पर काम करना पड़ेगा।
पूर्व सांसद कड़िया मुंडा
वही इस जतरा के संस्थापक पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय करमचंद भगत के पुत्र डॉक्टर रविंद्र भगत ने इस परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए विशाल शोभा यात्रा का आयोजन करवाते आये। उन्होंने भी संस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए अपनी बात रखा कहा 1967 हमारे पिताजी स्वर्गीय करमचंद भगत ने इसकी शुरुआत की थी 50 से अधिक पड़हा कि लोग यहां आते हैं सभी उम्र के लोग इस मेले में शामिल होते हैं। गांव के लोग ढोल नगाड़े मांदर अपने साथ लाते हैं नाचते और गाते हैं और इस मेले का आनंद लेते हैं57वां वर्ष है इस मेले का इसमें कई बदलाव आए हैं।