जमशेदपुर : साकची गोलचक्कर पर कॉमरेड केदार दास की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. जिसमें मजदूर नेता कॉमरेड केदार दास की 42 वीं पुण्यतिथि पर शाहवासियों नें उन्हें श्रद्धांजलि दी. ट्रेड यूनियन से जुड़े तमाम मजदूर संगठनों के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके बताए आदर्शो पर चलने का प्रण लिया.
कॉमरेड केदार दास, एक ऐसा नाम, जिसकी चर्चा से मजदूर आन्दोलन के इतिहास को याद कर अपने आप में ताजगी महसूस होती है. वैसे तो केदार दास का जन्म एक साधारण परिवार में 4 जनवरी, 1913 को बिहार राज्य के दरभंगा जिला (वर्तमान में मधुबनी जिला) के गुरमहा (पछारी) गाँव में हुआ. तथा उनका निधन दिनांक 19 फरवरी, 1981 को जमशेदपुर में हुआ. उनके बड़े भाई श्री श्याम बिहारी बाबू टीनप्लेट में रहते थे, वे भी नौकरी करने जमशेदपुर आए. टीनप्लेट कम्पनी में कॉपरेटिव में काम करते थे. अपने बड़े भाई के यहां रहकर टीनप्लेट में नौकरी करने लगे. जहां उनका सम्पर्क वारिन डे से हुआ जो एक क्रांतिकारी थे. साथ ही वे प्रोफेसर अब्दुल बारी के साथ खेत मजदूर आन्दोलन में जुटे. उसके बाद धीरे- धीरे उनमें आन्दोलन का तेवर बदलने लगा इसी बीच एटक (AITUC) का बंटवारा हुआ और वे दोस्ताना रवैये के साथ प्रोफेसर अब्दुल बारी को यूनियन ऑफिस की चाबी थमा दी और एटक के नेतृत्व में मजदूर आन्दोलन करने लगे.
सन् 1957 में पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए उसके बाद 1958 आते- आते टिस्को के अन्दर कॉ. केदार दास के नेतृत्व में हड़ताल हुआ. उनके महत्वपूर्ण साथियों में अली अमजद, वारीन डे, निपेन बनर्जी सत्यनारायण सिंह, गुरुबख्श सिंह, रामवतार सिंह आदि महत्पूर्ण थे. उसी आन्दोलन के परिणाम स्वरूप जिन्दा या मुर्दा केदार दास की गिरफ्तारी का वॉरण्ट निर्गत किया गया. जैसे- तैसे वे यहां से निकलकर बिहार विधानसभा पहुंचे, जहां उनकी गिरफ्तारी की गई.
केदार दास को 1962 में चुनाव लड़ने से कानून रोका गया, लेकिन जमशेदपुर की जनता ने उसका करारा जवाब दिया और 1962 में जमशेदार के दोनों सीटों पर केदार दास के सहयोगी मित्र चुनाव जीते, जिसमें रामवतार सिंह जमशेदपुर (पश्चिम) तथा सुनील मुखर्जी (पूर्वी) क्षेत्र से चुनाव जीते. साथ ही साथ संसदीय सीट पर यूके मिश्रा सांसद चुने गए. इस आन्दोलन का असर यह रहा कि बगल में घाटशिला विधानसभा से इनने अनन्य सहयोगी कॉ. वास्ता सोरेन भी विजयी हुए जेल से लौटने के बाद पुनः आन्दोलन ने रफ्तार पकड़ा और 1969 में ऐतिहासिक इंजीनियरिंग मजदूरों का हड़ताल हुआ, जिसमें सकारात्मक उपलब्धि मिली. उसके बाद फिर विधानसभा में दो बार और विजयी हुए, और 1981 में इस शहर के सबसे शोषित पीडित ठेकेदार मजदूरों का ऐतिहासिक हड़ताल किया उसी हड़ताल के दौरान 19 फरवरी, 1981 को उनका निधन हो गया. मजदूर नेता अंबुज ठाकुर ने कहा हम इनकी स्मृति को सलाम करते हुए उम्मीद रखते हैं कि, वर्तमान देश की सरकार के मजदूर विरोधी, दमनकारी नीति के खिलाफ संघर्ष करते हुए मजदूरों के अधिकारों के रक्षार्थ अनवरत संघर्ष करते रहेंगे.