पौष संक्रांति दिने शोचिर नंदन,
गंगा स्नाने चोलीलेन लोए भक्त गण,
पोटका: जैसा कि मान्यता है पौष संक्रांति के दिन राजा भगीरथ मां गंगा को मर्त्य धाम में तपस्या कर के लाये थे. उनके अभिशप्त सागर वंश को मुक्ति दिलाने के लिए गंगासागर के कपिल मुनि के आश्रम में, इसलिए माँ गंगा का और एक नाम भगीरथ भी है. मां गंगा का स्पर्श पाकर सागर वंश का उद्धार हुआ था, इसलिए पौष संक्रांति में गंगा स्नान करने का इतना महत्व है. सबलोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते हैं इसलिए गाँव के लोग नदी अथवा तालाब में जाकर नहाते हैं. नए वस्त्र पहनते हैं और मकर कीर्तन करते हुए घर आते हैं. यह धार्मिक परंपरा आज भी पोटका के नुआग्राम में जीवित हैं. 15 जनवरी 2023 को सुबह 11 बजे गांव के कीर्तन मंडली सुनील कुमार दे के नेतृत्व में गांव के तालाब से मकर कीर्तन करते हुए आये. साहित्यकार और शिल्पी सुनील कुमार दे ने मकर कीर्तन में कहा-
पौष संक्रांति दिने शोचिर नंदन,
गंगा स्नाने चोलीलेन लोए भक्तगण।
चाऊ दिके भक्तगण हरिध्वनी कोरे,
एसे उपनीत होलो जाह्नबीर तीरे।।
अर्थात पौष संक्रांति दिन में चैतन्य महाप्रभु अपने भक्तजनो के साथ गंगा स्नान हेतु हरिनाम करते हुए माँ गंगा के पास पहुंचे. मकर कीर्तन करने के पीछे यही मान्यता है. नुआग्राम के कीर्तन मंडली मकर कीर्तन करते हुए पूरा गांव परिक्रमा किया. अंत मे शिव मंदिर में प्रदक्खिन करते हुए लक्खी मंदिर में कीर्तन का समापन किया गया. कीर्तन के पश्चात मकर चावल और तिल लड्ड़ू प्रसाद के रूप में वितरण किया गया. कीर्तन मंडली में सुनील कुमार दे के अलावे शंकर चंद्र गोप, भास्कर चंद्र दे, स्वपन दे, तरुण दे, तपन दे, महादेव दे, प्रशांत दे, शैलेन्द्र प्रामाणिक, प्रदीप दे, अरुण पाल आदि ने सहयोग दिया. इसी तरह की परंपरा झारखंड के बहुत गांव में आज भी जीवित है.



