जमशेदपुर: रविवार काे आदिवासी 'हो' समाज कल्याण समिति के तत्वाधान में बिरसानगर जोन-2 स्थित दिशाउली देवस्थल में प्राकृतिक पूजक हो समुदाय द्वारा बाहा-बोंगा धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ नंदू होनहागा उपस्थित थे.
फरवरी से अप्रैल माह यानी फागुन-चैत माह से मनाया जाने वाला यह बसंत उत्सव समाज के लोगों पर खुशियों की बौछार करता है. मान्यता अनुसार बाहा परब मनाए जाने का मुख्य कारण प्रथम आदि मानव लूकू हड़म और लूकू बूढ़ी बसंत ऋतु में शिकार पर जाने से पूर्व मदमस्त, सुरभिसिक्त शालवन में विचरण को जाते हैं, जहां सर्व शक्तिमान अदृश्य सिंगबोगा की कृपा व वरदान स्वरूप कठिन साध्य शाल पुष्प की डाली उपहार में इन्हें मिलती है. इस घटना के पश्चात प्रतिवर्ष वन देव से फूलों की याचना पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव से की जाती है.
सरजोम अथवा शाल साक्षात देव वृक्ष माना जाता है. इस बोंगा में प्रतीक स्वरूप फूलों की डालिया मुख्यत: सारजोम (शाल), मूर (पलाश), मटकम (मौलश्री), उली(आम), ईचा(धधिर्क), तारोप(चहर), तिरिल(केन्दु) फूल व डाली पूजे जाते हैं. दिशाउली में दियूरी (पुजारी), सीताराम हेंब्रोम, सूरा गागराई, वासू भूमिज के साथ महिला पुरुष पारंपरिक लिबास व गाजा-बाजा के साथ पहुंचे और दियूरीयों द्वारा विधिवत आराध्य देवी-देवताओं (ग्राम देवता, सूर्य देवता, वन देवता) का आवाहन कर सखुआ व अन्य फूल चढ़ाए गए. सभी मानव व जीवों के कल्याण खुशहाली व सुख-समृद्धि की कामना की गई.
सभी ने देशाउली में माथा टेक कर दियूरी से आशीर्वाद और सखुआ फूल ग्रहण कर प्रसाद के रूप में सेड़ो ग्रहण कर वहां नृत्य किया. इस अवसर पर समाजसेवी जयपाल सिरका, चांदमणि कुंकल समिति के अध्यक्ष सोमनाथ बानरा, सचिव संतोष पूर्ति, परगना बारी, संयुक्ता बारी, डॉ प्रमिला हेम्बरम, सुनीता मेलगाडी, निरसो बानरा, दीपक बिरुली, प्रियंका सिरका, रामलाल जोंको, संजीव बोदरा अभिषेक होनहागा एवं अन्य काफी संख्या में महिला-पुरुष एवं बच्चे उपस्थित रहे.



