सद्गुरु के संपर्क में आने से साधक के मन में ब्रह्मभाव उत्पन्न हो जाता है 

जमशेदपुर : जमशेदपुर एवं आसपास के क्षेत्रों से काफी संख्या में आनंद मार्गी तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन के अंतिम दिन भी भाग लिए. जो लोग शारीरिक रूप से इस कार्यक्रम में भाग नहीं ले पाए  वे वेब टेलीकास्ट के माध्यम से कार्यक्रम का लाभ उठाएं.

आनंद संभूति मास्टर यूनिट बाबा नगर जमालपुर  में आयोजित तीन दिवसीय आनंद मार्ग का धर्म महासम्मेलन के तीसरे दिन पंडाल में अपने आध्यात्मिक उद्बोधन में श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने "पारस मणि" विषय पर प्रकाश डालते हुए कहे कि जिस तरह पारसमणि के संपर्क में आने से लोहा या पत्थर भी सोना हो जाता है ऐसा कहा जाता है किंतु एक पारसमणि अवश्य होते हैं और वह है "सद्गुरु". उदाहरण देते हुए संगीत के भाव व्यक्त करते हुए कहा कि भक्त भगवान से कहता है कि मेरे सारे प्रयोजन   तुम्हारे स्पर्श से पूर्ण हो जाता है. एक तुच्छ व्यक्ति भी  तुम्हारे स्पर्श से चमक उठता है. तुम सूर्य की तपती गर्मी में मेरी सारी कलांति हरण कर लेते हो और मेरे सुख दुख में मुझे शांति प्रदान करते हो. इसलिए जीवन में हर परिस्थिति में मनुष्य को गुरु को नहीं भूलना चाहिए. भक्त भगवान से कहता है कि मै बेकार ही तुम्हें ढूंढने के लिए इधर-उधर भटकता हूं, मन ईश्वरमुखी ना होने पर जड़ जगत में लगा रहता है. क्षणिक सुखों के लिए भटकता रहता है. आनंद मार्ग के आरंभिक दिनों में बाबा का एक रूम था उसी में बाबा साधकों से मिलते थे. 

एक बार उन्होंने एक भक्त दशरथ जी को ध्यान करने को कहा. ध्यान में जाने के बाद बाबा एक बच्चे के वृत्ति पीठ को देखने के लिए कहा उन्होंने कहा कि बाबा बच्चे का वृत्ति पीठ काला है. बाबा ने कहा ठीक कहते हो फिर बाबा ने पूछा कि यदि अभी इसकी मृत्यु हो जाए तो क्या बनेगा दशरथ दादा ने कहा लोमड़ी. लोमड़ी कपटाचार का प्रतीक है. बाबा ने उस बच्चे को बुलाकर उसका गाल थपथपा दिया और फिर दशरथ दादा को उस बच्चे के वृत्ति पीठ को देखने को कहा दशरथ दादा ने कहा कि उसका वृत्ति पीठ सफेद हो गया है. बाबा ने कहा दशरथ वह लड़का अच्छा है साधना और सेवा से उसका वृत्ति पीठ अच्छा हो जाएगा. तंत्र साधना कहता कि सद्गुरु के दर्शन मात्र से, शब्दों से और स्पर्श से साधक के देह में शिव भाव उत्पन्न कर देता है. बाबा साधकों की त्रिकुटी स्पर्श करते थे तो भक्त समाधि में चला जाता था. 

तुम्हारे स्पर्श से तुम्हारे आसपास से कनक उज्जवल हो जाता है और तुम्हारे संपर्क में आने से  मन परमपुरुष के ब्रह्मभाव धारा में बहने लगती है. संस्कार अनुसार मन इधर-उधर अवश्य भटकता है, किंतु साधना में ठीक हो जाता है. जिसकी आंखों में आंसू आ जाए तो उसे प्रभु के प्रति भक्ति जग गई, प्रेम जग गया. उन्होंने कहा कि प्रतिकूल अवस्था में हृदय से गुरु से बात करो साथ ही साधना करो अतः यह सदैव स्मरणीय रहेगी सद्गुरु  ही पारसमणि होते हैं और साधकों के मानस अंतःकरण को स्वच्छ कर देते हैं.

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