जमशेदपुर: दलमा की तराई में बसे आदिवासी बहुल गांव में आज के दौर में विभिन्न प्रकार के पलाश की फूलो से बनाए गए रंगो से होली खेलते हैं. यहां प्राचीन काल से कुदरती रंगो से होली मनाया जाता है. दलमा जंगल की तराई में पलाश की खेती होती है. जैसे सफेद फूल, गुलाबी फूल ओर पीला फूल का पलाश पेड़ देखने को मिलेगा. जिधर भी नजर घुमाइये दूरदराज तक पलाश के पेड़ो में फूल खिले मिलते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में आज भी पलाश की विभिन्न फूलो से गुलाल और रंग बनाया जाता है और उन्हीं रंगो से होली खेलते हैं. इससे स्वास्थ्य व शरीर में कोई साइउइफेक्ट भी नहीं होता. आज के दौर में जहां कुदरती रंगो की अपेक्षा रसायनिक कैमिकल रंगो से विभिन्न प्रकार की त्वचा संबधित रोग होता है. पलाश के पौधे से लाही उत्पादन होता है. जिससे किसान को रोजगार उपलब्ध होता था.
झुनि वाला महतो परिवार के लोगों ने संयुक्त रूप से पलाश का फूल लेकर मिट्टी की हांडी में कुदरती ढंग से रंग बनाते हुए पान में भिगोया गया और पांच दिन के बाद पलाश की फूलों को निकालकर सिल में पीस कर रंग बनाया जायेगा. जिसमें समान मात्रा में चूना मिलाया जाता है. जिससे रंग गाढ़ा होता है. कुछ फूलो को घर के छत पर सुखाया जाता ओर गुलाल बनाया जाता है. आज भी लोग बड़ी उम्मीद के साथ पलाश के फूलो से रंग बनाते हैं. झारखंड राज्य बनने के बाद राष्ट्रीय नाम दिया गया.



